पुरुष आज बदला हुआ नज़र आता है तो वह इसलिए नहीं कि वह फ़ेमनिस्ट रवैया अख्तियार कर रहा है बल्कि इसलिए कि इस स्तर पर महिलाओं को लाने के लिए गांधीजी ने अप्रतिम कार्य किया. एक बार जस्टिस रानाडे ने गांधीजी के बारे में कहा था कि 'हम लोग अपनी पूरी जिंदगी में स्त्रियों के हित में जितना काम कर पाएंगे गांधी जी उतना एक दिन में कर देते है.' इस कथन से कल्पना की जा सकती है कि स्त्रियों को इस मुकाम तक पहुचाने में गांधी जी का कितना महत्वपूर्ण योगदान है. हालांकि आज भी स्त्रियां बापू के भारत वाला स्थान नहीं प्राप्त कर सकी है आज भी स्त्रियां अत्याचार, हिंसा, बलात्कार, समाजिक भेदभाव से कराह रही है इनमे मुक्ति की छटपटाहट है लेकिन कोई गांधी जैसा रहनुमा नहीं है. उनका कहना भी था कि मैं आज़ादी के बाद अपना पूरा जीवन स्त्रियों के मुक्ति में लगाऊंगा.
गांधी जी का मानना था कि स्त्रियों की अज्ञानता का कारण पुरुष है जिन्होंने इन्हें चूल्हे-चौके और घर के मकड़ जाल में इस तरह उलझा दिया कि वे बाहर की हवा भी नहीं ले पाती उन्हें कुछ भी पता नहीं कि बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है. उन्हें यह भी नहीं पता कि सार्वजनिक जगहों पर कैसे उठा-बैठा जाता है, कैसे बोला जाता है. इस स्तिथि में लाने में उनका जरा भी दोष नहीं है बल्कि इसके बदले वे सम्पूर्ण पुरुष समाज को उत्तरदायी मानते है.
गांधी जी अपने बिहार प्रवास के दैरान अनुभव करते हैं की स्त्रियां न तो सार्वजनिक सभा में जा सकती है और न ही किसी से बाते कर सकती है उस समय भारत में पर्दा प्रथा एकदम चरम पर था. एक बार वे किसी सज्जन के घर बरामदे में बैठ कर बाते कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि स्त्रियां उन्हें खिड़कियों और छेदों से मासूम, बेबस व गुलामी की जकड़ी आँखों से निहार रही थी. वे सोचते थे कि स्वतंत्रता इनका मौलिक अधिकार है इन्हें यह भी नहीं पता है वे इस समय जिस अवस्था में है वह सहज नहीं है.
गांधी जी अंदर जाकर स्त्रियों से कहा कि आपने गौर किया हमारे साथ एक विदेशी महिला को देखा वे इतनी दूर से आई है और लोगों की समाज सेवा करती है आप लोगों का मन नहीं करता? उन स्त्रियों ने कहा क्यों नहीं बापू लेकिन, हमारे घर के पुरुष हमें घर से बाहर निकलने नहीं देते.
इस घटना के उपरांत बापू ने सम्पूर्ण भारत के लोगों से आह्वाहन किया कि वे अपने घर से पर्दा प्रथा मिटाये और सभी कांग्रेसी से शपथ दिलवाई की वे अपनी बहन, बेटी, माँ को बाहर लाये और सार्वजनिक कार्यो में लगाए जिसके बाद समाज में एक क्रांति सी आ गई और खादी वस्त्रों को धारण की हुई स्त्रियां लोगों को चकित करने लगी. लाहौर में खादी की साड़ी में जनसभा को संबोधित करने वाली पहली महिला सरलादेवी चौधरानी थी उन्होंने उत्तर भारत में खादी और चरखा का प्रसार किया और लोगों को सूत कातने का प्रशिक्षण प्रदान किया तो यही काम उड़ीसा में सुभद्रा महताब ने किया और रमादेवी चौधरी के साथ मिलकर 'कर्म मंदिर' की स्थापना कि. राजकुमारी अमृत कौर ने पंजाब में व मणिबेन नानावती ने विलेपार्ले में ' खादी मंदिर' शुरू किया जो चरखा प्रचार को समर्पित था. इसी समय में पटना से प्रभावती देवी ने 'गृहलक्ष्मी', 'स्त्रीधर्म' जैसी पत्रिकाओं को निकाला जिसमे स्वदेशी व खादी के मुद्दे की वकालत कि.
जाति व्यवस्था में डूबे समाज को गांधी जी ने हिन्दू समाज का दाग कहा. इस ब्यवस्था से स्त्रियों की स्तिथि खराब हो गई खास कर दलित स्त्रियों की वो तो मानो दोहरी दुर्बलता की शिकार हो गई एक तो दलित दूसरी स्त्री होने की दुर्बलता. इसलिए इस कुरुति को खत्म करने के लिए महिलाओं को आंदोलन में लाया जिसमे रामेश्वरी नेहरू ने अपना जीवन समर्पित कर दिया.
1934 ई० में 'अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ' की उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया और मंदिर प्रवेश बिल को हरिजन के पक्ष में पास कराने की कोशिश कि. मारग्रेट कज़िन ने रामेश्वरी नेहरू को हरिजन सेवक संघ में गांधी का दाहिना हाथ बताया. रमादेवी ने 'सेवानगर आश्रम' की स्थापना कि और दलित स्त्रियों को पढ़ाया और छूआछूत विरोधी आंदोलन शूरू किया.
कई जगहों पर गांधी से प्रेरित होकर महिलाओं ने रात्रि विद्यालय खोला तो वही हिन्दू- मुस्लिम एकता बढ़ाने के लिए गांधी महिलाओं की अग्रणी भूमिका मानते थे और उनके विचारों से प्रेरित होकर 'खुदाई ख़िदमतगार' की तर्ज पर मृदुला बनर्जी ने ' इंसानी बिरादरी' की स्थापना कि जो भारतीय सामाजिक संस्कृति को बढ़ावा देती थी.
गांधी के कई कार्यो का कट्टर हिंदुओं ने विरोध किया और भोली-भाली स्त्रियां भी इनमे शामिल थी उनका मानना था कि सदियों पहले प्राचीन काल से चली आ रही आ रही परम्परा गलत कैसे हो सकती है. गांधी ने उनके जवाब में कहा कि पाप बहुत प्राचीन समय से चली आ रही है उसके बारे में आप क्या कहेंगी.
महात्मा गांधी ने एक नारा दिया था, 'तुम मुझे खादी दो मैं तुम्हे उसी खादी से स्वराज का ताना बाना बुन दूंगा'. 19 वी सदी के समाज सुधारकों के उलट गांधी जी को महिलाओं के ऊपर पड़ने वाले औपनिवेशिकरण के नकारात्मक प्रभाव का एहसास हो चुका था. दरअसल हस्तशिल्प उद्योगों के पतन से सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं को हुआ. गांधी ने चरखा रूपी अस्त्र देकर स्वावलंबी बनाया और उन्हें मनुष्य के रूप में प्रतिष्ठित किया.
गांधी ने वैश्याओं तक को स्वावलंबी/ आर्थिक रूप से निर्भर बनाने के लिये चरखा को माध्यम बनाया. गांधी का मानना था कि वैश्या समाज के पुरुष के पशुत्व की उपज है. पुरुष जब तक पशुत्व नहीं छोड़ेंगे तब तक समाज में वैश्या रहेंगी किन्तु जो बहने इस दलदल में फस चुकी है वो चरखा को अपना माध्यम बनाकर अपनी आजीविका वहन कर सकती है मुझे मालूम है इसमें कम पैसा मिलेगा लेकिन आप ईश्वर का स्मरण करते हुए चरखा काते आप को सम्बल मिलेगा. उन्होंने युवकों से आहवाहन किया जिन युवको को इन बहन बेटियों से ब्याह करना है वे उनसे ब्याह रचाये. कई युवकों ने प्रेरित होकर अपना सारा जीवन बिताया और अपना घर बसाया.
उस समय जब तत्कालीन भारतीय समाज मे स्त्रियों को घर के कोने में रखा जाता था और कुछ उच्च वर्ग की स्त्रियों को छोड़कर स्त्रियों को अपने पिता तक से बात करने की अनुमति नहीं थी और यह माना जाता था कि पुरुष ही बुढ़ापे में सहारा होता है तो बापू ने आभा और मनु को लाठी बनाकर समाज को यह दिखाया कि सिर्फ पुरुष ही बुढ़ापे में बाप के सहारा नहीं बन सकते बल्कि स्त्रियां भी उतनी ही सेवा कर सकती है.
आज जब समाज मे बहस चल रही है कि विवाह के लिए पुरुष और स्त्रियों की आयु समान होनी चाहिए जो विधि आयोग की रिपोर्ट भी कहती है. इस पर गांधी जी ने एक सवाल के उत्तर में कहा कि स्त्री की भी वही विवाह की उम्र हो जो पुरुषों की है अर्थात समान उम्र हो.
गांधी जी विधवा विवाह को लेकर प्रगतिशील है उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे अपने विधवा पुत्रियों का पुर्नविवाह करे वही गांधी के अनुसार सती का मतलब यह है कि वह अपने पति के वैवध्य को आगे बढ़ाए यह नहीं कि चिताओं पर जिंदा जलाई जाय.
स्त्री स्वतन्त्रता कहा तक दी जाय इस पर गांधी कहते है कि वह कही भी जाय; वह चाहे अकेले फिल्म देखने जाय या किसी के साथ वह स्वतंत्रत होनी चाहिए आपने जीवन के विकल्पों को लेकर. कुल मिलाकर गांधी को अपनी परंपरा व संस्कृति पर गौरव था किंतु कुरूतियों, प्रथाओं और कुसंस्कार के प्रति विद्रोहात्मक रवैया था.
गांधी जी बलात्कार को एक दुर्घटना मानते थे और वे कहते थे कि पुरुष जब साधनों से यात्रा करते है तो उनका दुर्घटना होती है तो क्या वे यात्रा करना छोड़ देते है नहीं न ? इसलिए समाज में बलात्कार करने वाले पशु ज्यादा नहीं है तुम उनका सामना करो और उनका प्रतिरोध करो इस आत्मबल ने स्त्रियों को ऐसी वीरांगना बना दिया वे न तो अंग्रेजी पुलिस से डरती, न ही शराबी और न ही दंगाइयों से. वे शक्तिविहीन स्त्रियां शक्तिस्वरूपा बन गई.
इस तरह अगर निष्कर्ष रूप में कहे तो गांधी जी ने सदियों से जड़वत भारतीय समाज में एक दिशा प्रदान की जो उन्हें उनके ब्यक्तिगत और सामाजिक व राजनीतिक जीवन मे आत्मबल का प्राण फूका और यह आत्मबल था आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता का ताकि वे अपने अधिकारों के प्रति सजग हो सके. प्रसिद्ध नारीवादी लेखिका जर्मेन ग्रीर के शब्दों में कहे तो नारियों का शोषण इसलिए होता है कि पुरुष अपने अर्थ/ धन से उनपर दबाव बनाते है इसलिए महिला उत्थान में स्त्रियों के आत्मनिर्भर होना जरूरी है. गांधी ने चरखे को अपना प्रतीक बनाया और उन्हें आत्मनिर्भरता का रास्ता बताया. हालांकि आज भी गांघी के सपनों का समाज नहीं बना है. हमने बड़े-बड़े पदों पर महिलाओं को उनकी काबिलियत से उन्हें दे तो दिया है पर आज भी उनके शोषण व दमन की खबरे देखने व सुनने को मिलती है जिस पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
15-11-2020
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